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ताम॑स्य री॒तिं प॑र॒शोरि॑व॒ प्रत्यनी॑कमख्यं भु॒जे अ॑स्य॒ वर्प॑सः। सचा॒ यदि॑ पितु॒मन्त॑मिव॒ क्षयं॒ रत्नं॒ दधा॑ति॒ भर॑हूतये वि॒शे ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tām asya rītim paraśor iva praty anīkam akhyam bhuje asya varpasaḥ | sacā yadi pitumantam iva kṣayaṁ ratnaṁ dadhāti bharahūtaye viśe ||

पद पाठ

ताम्। अ॒स्य॒। री॒तिम्। प॒र॒शोःऽइ॑व। प्रति॑। अनी॑कम्। अ॒ख्य॒म्। भु॒जे। अ॒स्य॒। वर्प॑सः। सचा॑। यदि॑। पि॒तु॒मन्त॑म्ऽइव। क्षय॑म्। रत्न॑म्। दधा॑ति। भर॑हूतये। वि॒शे ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:48» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:2» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजा कैसे राज्य को करे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (अस्य) इसके (भुजे) पालन के लिये (अख्यम्) कहने योग्य (अनीकम्) सेनादल के (प्रति) प्रति (परशोरिव) परशु के सम्बन्ध को जैसे वैसे (ताम्) उस (रीतिम्) रीति को (दधाति) धारण करता है (अस्य) इस (वर्पसः) रूप के (सचा) सम्बन्धि (पितुमन्तमिव) अन्नवान् के सदृश (यदि) (भरहूतये) पालन-धारण करनेवाली वाणी आह्वान के लिये जिसकी उस (विशे) प्रजा के लिये (रत्नम्) रमणीय (क्षयम्) निवासस्थान को धारण करता है तो वही राज्य करने के योग्य होता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - प्रजा की पालना के लिये गूढनीति से राजा व्यवहारों का अनुष्ठान करे और सब की पालना यथार्थभाव से करे ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजा कथं राज्यं कुर्य्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! योऽस्य भुजेऽख्यमनीकं प्रति परशोरिव तां रीतिं दधात्यस्य वर्पसः सचा पितुमन्तमिव यदि भरहूतये विशे रत्नं क्षयं दधाति तर्हि स एव राज्यं कर्त्तुमर्हति ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ताम्) (अस्य) (रीतिम्) (परशोरिव) (प्रति) (अनीकम्) सैन्यम् (अख्यम्) कथनीयम् (भुजे) पालनाय (अस्य) (वर्पसः) रूपस्य (सचा) सम्बन्धि (यदि) (पितुमन्तमिव) (क्षयम्) निवासस्थानम् (रत्नम्) रमणीयम् (दधाति) (भरहूतये) भरा पालिका धारिका हूतयो यस्यास्तस्यै (विशे) प्रजायै ॥४॥
भावार्थभाषाः - प्रजापालनाय गूढनीत्या राजा व्यवहारान् व्यवहरेत् सर्वस्य च रक्षणं यथार्थतया कुर्य्यात् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजाने प्रजेचे पालन करण्यासाठी गूढ नीतीचा व्यवहार करावा व सर्वांचे यथार्थभावाने पालन करावे. ॥ ४ ॥